कहते हैं कोशिशें कामयाब होती हैं
कितनी कोशिशें
हमने भी कीं...
याद है वह हमारा छुपना चांद से,
अपने-अपने छतों पर?
उसे न देखने की कोशिश?
खिड़की भी तो बंद कर ली थी मैंने
कि वही चाँदनी तुम्हारी आँखों से छन कर
मुझ तक पहुँचती होगी।
और वो शाम?
जिस शाम हम मिले थे
आसमां का रंग और हमारे प्यालों की कॉफ़ी का
कत्थई रंग जो आँखों में समा गया था,
उसे मिटाने की कोशिश...
देखो! आज भी तो आ जाती है वह शाम ख्वाबों में
डूबते हुये सूरज का पता देने?
तुम्हें न हो याद शायद पर मुझे है याद,
वह आधी रात को उठ कर
सितारों के कारवां में एक सितारा बन
तुम्हारे साथ-साथ चलना मेरा,
तुम्हें अहसास नहीं मगर
मैं चलती थी तुम्हारे आंगन में,
देख आती थी तुम्हें सोते हुये
तुम्हारे ख्वाबों में,
उन सोने-चांदी के पेड़ पत्तों को छू आती थी,
उसे सिरहाने रख सोने की कोशिश की थी
नींद नहीं आई उस रात,
फिर किसी रात...
और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें!
कौन कहता है कोशिशें कामयाब होती हैं?
कितनी कोशिशें
हमने भी कीं...
याद है वह हमारा छुपना चांद से,
अपने-अपने छतों पर?
उसे न देखने की कोशिश?
खिड़की भी तो बंद कर ली थी मैंने
कि वही चाँदनी तुम्हारी आँखों से छन कर
मुझ तक पहुँचती होगी।
और वो शाम?
जिस शाम हम मिले थे
आसमां का रंग और हमारे प्यालों की कॉफ़ी का
कत्थई रंग जो आँखों में समा गया था,
उसे मिटाने की कोशिश...
देखो! आज भी तो आ जाती है वह शाम ख्वाबों में
डूबते हुये सूरज का पता देने?
तुम्हें न हो याद शायद पर मुझे है याद,
वह आधी रात को उठ कर
सितारों के कारवां में एक सितारा बन
तुम्हारे साथ-साथ चलना मेरा,
तुम्हें अहसास नहीं मगर
मैं चलती थी तुम्हारे आंगन में,
देख आती थी तुम्हें सोते हुये
तुम्हारे ख्वाबों में,
उन सोने-चांदी के पेड़ पत्तों को छू आती थी,
उसे सिरहाने रख सोने की कोशिश की थी
नींद नहीं आई उस रात,
फिर किसी रात...
और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें!
कौन कहता है कोशिशें कामयाब होती हैं?
17 comments:
यादों का कारवां कहीं कोने में मद्धम गति से चलता रहता है, लाख जतन कर भी उसे मिटाया नहीं जा सकता है| बहुत सुन्दर कविता|
और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें!
अंतर्मन की आवाज़ बयां करती ये पंक्तियाँ बेमिसाल हैं|
अच्छी पंक्तिया है ....
बहुत बढ़िया .... आभार
एक बार जरुर पढ़े :-
(आपके पापा इंतजार कर रहे होंगे ...)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_08.html
bahut sundar..
कॉफी का रंग आँखों में समा गया था। कोमल कल्पना।
umda shavad chitra hai
एक अजीब-सी सिहरन दौड़ गयी पूरे शरीर में इस नज़्म को पढ़ने के बाद। कितने दिनों बाद आज फुरसत निकाल पाया "मानसी" के लिये...रूबरू हुआ इस अद्भुत ऐलाने-ए-इश्क से। "कि वही चाँदनी तुम्हारी आँखों से छन कर मुझ तक पहुँचती होगी"...और इसलिये खिड़की बंद कर लेना, उफ़्फ़्फ़ !
सचमुच कौन कहता है कि कोशिशें कामयाब होती हैं...!!
और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें ...
गहरी बात ... कौन कहता है कोशिश कामयाब होती है ... पर फिर भी कोशिश करने का मन होता है .... उस खुश्बू को बाँधने का मन होता है ... बहुत लाजवाब ...
मानोशी जी, काफ़ी दिनों बाद आपकी एक खूबसूरत और कोमल भावनाओं से परिपूर्ण रचना पढ़ना अच्छा लगा।
ओह ...एक नाकाम सी कोशिश ...पर बहुत सुन्दर ...
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें!
सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
ati sunder...heart warming
बहुत लाजवाब सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
और सुनो! वो लाल फूल
जो दहकते हैं आज भी
तुमने जिन्हें सींचा था अपने प्यार से,
आज भी मेरे बगी़चे में महकते हैं,
कैसे मिटा दूँ खुश्बू हवा से बताओ!
जानती हूँ खुश्बू का बसेरा नहीं।
उसे कहां बाँध सकूंगी मैं,
पर ये कोशिशें...नाकाम कोशिशें!
सच में बीती यादों के झरोखों से कोई बेहतरीन नज़्म खींच कर ब्लॉग के सफों पर बिछा दी आपने..... इतनी मासूनम नज़्म है की कुछ भी टिपण्णी क्लारते हुए दर सा लगता है....बहुत प्यार से तितली को पकड़ें तो भी रंग उतरने का खतरा तो रहता ही है..ठीक वैसे ही.....! खूबसूरत नज़्म का शुक्रिया !
bahoot hi sunder aur bhavpurna kavita.......... very nice
upendra ( www.srijanshikhar.blogspot.com )
भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति....
मनमोहक सुन्दर ऐसी रचना जो मन को अपने प्रशन से बोझिल भी कर जाती है...
bahut hi behtareen rachna...
bahut khub.......badhai...
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ..
अच्छी कविता
बहुत अच्छी कविता|
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